जब फूले दंपत्ति को उनकी जाति और न ही उनके परिवार और सामुदायिक सदस्यों ने उन्हें उनके सामाजिक शिक्षा,सुधार के काम में साथ नहीं दिया।आस-पास के सभी लोगों द्वारा त्याग दिया गया,जोड़ी ने आश्रय की तलाश में और समाज के उत्पीड़न के विरूद्ध कार्य के दौरान, अपने शैक्षिक सपने को पूरा करने के लिए,अपनी खोज के दौरान वे एक मुस्लिम सज्जन उस्मान शेख के संपर्क में आए जो पूना के गंजपेठ में रह रहे थे। उस्मान शेख ने फुले के जोड़ी को अपने घर की पेशकश की और परिसर में एक स्कूल चलाने पर सहमति व्यक्त की।फ़ातिमा शेख़ मियां उस्मान शेख की बहन थीं।
1848 में उस्मान शेख और उसकीं बहन फातिमा शेख के घर में एक स्कूल खोला गया।पूना की ऊंची जाति से लगभग सभी लोग फ़ातिमा और सावित्रीबाई फुले के खिलाफ थे,और सामाजिक अपमान के कारण उन्हें रोकने की भी कोशिश थी। यह साहसी महिला फातिमा शेख थीं जिन्होंने हर संभव तरीके से दृढ़ता से फूले दंपत्ति का साथ दिया।
फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ उसी स्कूल में पढ़ना शुरू किया।सावित्रीबाई और फातिमा सागुनाबाई एक साथ थीं।जो बाद में शिक्षा आंदोलन में एक और अग्रणी,वंचितों के लिए एक मार्गदर्शक बन गयीं।फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख भी ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के आंदोलन से प्रेरित थे।वो उस्मान शेख ही थे जिन्होंने अपनी बहन फातिमा को समाज में शिक्षा का प्रसार करने के लिए प्रोत्साहित किया।
जब फातिमा और सावित्रीबाई ने ज्योतिबा द्वारा स्थापित स्कूलों में जाना शुरू कर दिया,तो पूना से लोग उन्हें परेशान करते थे और वे पत्थर, गोबर उन पर फेंकते थे।यदि महान भाई बहन उस्मान शेख और फ़ातिमा शेख साथ न होते तो समाज की महिलाओं को शिक्षा प्रदान करने की राह अधिक कठिन होती।उनका योगदान सदैव याद किया जायेगा।