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निर्मला नागपाल ने कुबूला इस्लाम, बताई कई खास वजह
सत्य की खोज:
सरोज खान एक ऐसे माहौल से ताल्लुक रखती थीं जहां के लिये सबसे गैर अहम चीज़ अगर कोई होती है तो वो होता है ।धर्म या मज़हब, यहां तक कि किसी भी धर्म के आदमी से कोई शादी कर ले लेकिन अपना धर्म बदलने या छोड़ने का कोई उपक्रम नही किया जाता, या निजी फायदे के लिए अगर धर्म बदलते भी हैं । तो उनकी ज़िंदगी पर उसका कोई असर नहीं देखा जाता । ( जैसे धर्मेंद्र-हेमा का उदाहरण, जो शादी करने के लिए मुस्लिम बने थे)
सरोज खान का पहला नाम निर्मला नागपाल था । इस माहौल में सरोज खान ने कुबूले इस्लाम कैसे किया, इस बारे में वो बताया करती थीं कि उनकी पहले पति मास्टर बी सोहनलाल से उन्हें एक बच्चा पैदा हुआ था जो बच नहीं सका । इससे पहले उन्हें सोहनलाल से एक बेटा राजू भी हुआ था लेकिन सोहनलाल ने उनके बेटे को अपनाने से इनकार कर दिया था क्योंकि वो पहले से शादीशुदा थे, इस बात से उनके रिश्ते में दरार आ गई और आखिरकार बात तलाक़ पर ख़तम हुई ।
इसके बाद उन्होंने रौशन खान साहब से शादी की, एक पाकिस्तानी चैनल को दिये इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वो रौशन खान की वजह से मुसलमान नही हुईं बल्कि उससे पहले से ही उन्हें मस्जिद में नमाज़ पढ़ने जाते छोटे बच्चों को देखकर बहुत अच्छा लगता था । इसके अलावा जो उनका जो बच्चा मर चुका था वो उन्हें ख़्वाब में दिखाई देता था, उन्हें दिखता था कि उनका वो बच्चा मस्जिद के अंदर से उन्हें आवाज़ें देता था कि “मम्मी अंदर आओ” ये बात उन्हें इस्लाम क़ुबूल करने की तरफ़ खींचा करती थी । और फिर एक दिन वो बम्बई की एक बड़ी मस्जिद में गईं और इस्लाम कुबूल करने की इच्छा ज़ाहिर की, मस्जिद में लोगों ने उनसे पूछा कि क्या आप किसी के दबाव में इस्लाम कुबूल करने की बात कह रही हैं ? इस पर सरोज ने कहा कि मुझपर कोई दबाव नही है बल्कि मैं खुद अपनी मर्ज़ी से इस्लाम कुबूल करना चाहती हूं । क्योंकि मुझे इस्लाम अच्छा लगता है और मुझे अपने अंदर से इस्लाम कुबूल करने की प्रेरणा मिलती है । इसके बाद उन्होंने अपने मरे हुए बच्चे के उनके ख्वाब में आकर मस्जिद में बुलाने वाली बात बताई…..!!!
कभी कभी मैं इस बारे में सोचता हूँ। और हैरत करता हूँ कि मुसलमानों में ये विश्वास है कि अगर किसी माँ का मासूम बच्चा मर जाये तो वो अल्लाह के पास पहुचकर अल्लाह से अपनी माँ के लिये दुआ किया करता है । यक़ीनन ये बात सरोज खान नही जानती होंगी, मगर उनके मामले में मुसलमानों का यही विश्वास हक़ीक़त बन गया था….!!!!
( ज़िया इम्तियाज़)