देश की न्यायपालिका महासंकट में हैं। क्या कोई सुन रहा है?

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देश की न्यायपालिका महासंकट में हैं।क्या कोई सुन रहा है? मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा की सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई से अब तक 5 जज खुद को अलग कर चुके हैं। कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गौतम ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी। कोर्ट ने गौतम के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से मना कर दिया था।सबसे पहले खुद सीजेआई गोगोई ने गौतम की याचिका से सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था।इसके बाद जस्टिस बी.आर. गवई ने भी खुद को अलग कर लिया।संबंधित याचिका मंगलवार को जस्टिस एन.वी. रमन, जस्टिस बी.आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस बी.आर. गवई की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई थी। तीनों ने सुनवाई नहीं कीं।
इससे पहले गोगोई के इंकार करने के बाद को जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच को भेजा गया था लेकिन उन्होंने भी सुनवाई नहीं कीं। अब सुप्रीम कोर्ट के एक और जज जस्टिस रवींद्र भट्ट ने खुद को नवलखा केस से अलग कर लिया है।इसका सीधा सा मतलब यही है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी जज नहीं चाहता कि गौतम नवलखा का एफआईआर रद्द हो या उन्हें न्याय नहीं मिले।गौतम की गिरफ्तारी पर हाई कोर्ट द्वारा लगी अंतरिम रोक 4 अक्टूबर को खत्म हो रही है।अब जब जज ही सुनवाई नहीं कर रहे हैं तब गौतम को जल्द गिरफ्तार किया जा सकता है।वैसे भी महाराष्ट्र पुलिस ने गौतम के खिलाफ हिजबुल से संबंध होने का एक फर्जी केस पहले ही गढ़ लिया है।
ये उस देश की न्यायपालिका का हाल है जहाँ आतंकवादियों की सुनवाई भी होती रही है लेकिन वे अपने ही नागरिक की सुनवाई करने से इंकार कर रहे हैं।गौतम नवलखा जाने माने पत्रकार हैं और पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) से जुड़े रहे हैं। वह प्रतिष्ठित पत्रिका ‘इकनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली’ के संपादकीय सलाहकार भी हैं। उन्होंने सुधा भारद्वाज के साथ मिलकर गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक कानून 1967 को निरस्त करने की मांग की थी। उनका कहना है कि गैरकानूनी संगठनों की गतिविधियां के नियमन के लिए पारित किए गए इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है। पिछले दो दशकों से अक्सर कश्मीर का दौरा करते रहे नवलखा ने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर काफी लिखा है।अभी भी वे इसी मुद्दे पर काम कर रहे थे।
-विक्रम सिंह चव्हाण एक स्वतंत्र पत्रकार है, उनके निजी विचार

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