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कमाल की दूर अंदेश नज़र थी “उम्मत ए मुस्लिमा का माज़ी हाल और मुस्तक़बिल इसरार अहमद रह.”
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे नूरी पे रोती है ।
बड़ी मुशकिल से होता है चमन में दीदा वर पैदा ।।
आज ही के दिन हज़रते इसरार अहमद रहमतुल्लाह की पैदाइश हुई थी | इसरार अहमद की उम्र 78 साल थी और उन्होंने फ़िक्र-ए-‘इक़बाल’ को आम करने और ‘निज़ाम-ए-हक़ : ख़िलाफ़त’ क़ायम करने के लिए जद्दोजहद की | इसी के साथ ही साथ उन्होंने दर्स-ए-क़ुरआन को इंक़लाबी ऐतबार से आम किया |
इसरार अहमद रहमतुल्लाह की पैदाइश मुल्क़-ए-हिंद की रियासत-ए-हरियाणा के हिसार ज़िले 26 अप्रैल 1932 ई० में हुई थी | आप ने 1954 ईस्वी में लौहार की किंग एड्वर्ड मेडिकल यूनिवर्सिटी से ऍम.वी.बी.एस. की डिग्री हासिल की और बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ कराची से इस्लामियात में मास्टरी की |
इसरार अहमद 1950 ईस्वी में जमात-ए-इस्लाम का हिस्सा बने और मौलाना मौदूदी के साथ काम किया | 1957 ईस्वी में आप जमात-ए-इस्लामी से अलग हो गए क्योंकि जमात-ए-इस्लामी सियासत (इब्लीसी निज़ाम : जम्हूरियत) का हिस्सा बन गई थी और आप ने यह गवारा न किया | इसी दौरान आप ने कुछ वक़्त तब्लीग़ी जमात में भी लगाया मगर वहां से भी निराशा ही मिली |
1971 ईस्वी में आप ने डॉक्टरी का पेशा छोड़ दिया और इंक़लाबी दर्स-ए-क़ुरआन और निज़ाम-ए-हक़ को नाफ़िज़ करने की जद्दोजहद में लग गए |
आप ने 1972 ईस्वी में अंजुमन खुद्दाम-उल-क़ुरआन, 1975 ईस्वी में तंज़ीम-ए-इस्लामी और 1991 ईस्वी में तहरीक़-ए-ख़िलाफ़त की बुनियाद रखी ।
आप ने लगभग 60 उर्दू किताबें लिखी । आप मुहतदा, मुअर्रिख़, अदीब, ख़तीब, मुसन्निफ़, मुक़र्रिर, मुअज़्ज़, दूरंदेश और दीनी रहनुमा थे ।
कमाल की दूर अंदेश नज़र थी “उम्मत ए मुस्लिमा का माज़ी,हाल और मुस्तक़बिल ” अगर कोई इंसान इस टॉपिक को पूरा देख ले तो अपने कौम के गुज़रे हुए वक़्त और फिलवक़्त अज़ाब में मुब्तिला रहने की वजह और मुस्तक़बिल में सर बुलंदी होने की कई सारी बातों की जानकारी मिल जायेगी
अल्लाह मरहूम डॉ. इसरार साहब के जन्नत में दर्जात बुलंद फरमाये ।
थी डबडबाई आंखों में ख़िलाफ़त की ख़्वाहिशें ।
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