क्या हुआ अगर गंगा मैया ने 100-50 लाशें उगल दीं। कोई नई बात है क्या? कभी मुरादनगर गाजियाबाद की गंग नहर ने 44 लाशें उगली थीं। कुछ हुआ क्या? तो गंगा नदी में तैरती इन लाशों का क्या हो जाएगा?
क्या कभी पता चल पाएगा कि जिंदा लोग क्यों लाशों में बदल कर गंगा में तैरने लगे थे? कफन भी नसीब नहीं हो पाया उन्हें। चिता के लिए चंद लकड़ियां भी इनके नसीब में नहीं थीं। मरना भी कहां सस्ता रहा अब? हजारों रुपये लगते हैं साहब अंतिम संस्कार में भी। पता नहीं किस-किस ने दिल पर पत्थर रख कर अपनों को गंगा के सुपुर्द किया होगा?
सब को मालूम है, इन लाशों की जिम्मेदारी कोई नहीं लेगा। उत्तर प्रदेश में और बिहार में डबल इंजन की सरकार है? समझ रहे हैं ना डबल इंजन की सरकार? केंद्र में भी और राज्य में भी राष्ट्रवादियों की सरकार है। दोनों सरकारों में से कोई मानने को तैयार नहीं कि उनके प्रदेश की लाशें हैं।
अरे, तुम्हारे प्रदेश की न सही, हैं तो हिंदुस्तानियों की ना? इसी देश की हैं ना? पाकिस्तानियों या बंगलादेशियों की तो नहीं हैं ना? बस! लाशों की जिम्मेदारी लेने में ही सारा राष्ट्रवाद तेल लेने चला गया तुम्हारा? ऐसी ही होती हैं डबल इंजन की सरकार?