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जो आज है कल नहीं होंगे, कल नहीं होंगे ! अलविदा राहत इंदौरी साहब।
खिलाफ है होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुँआ है आसमान थोड़ी है…
मानता हूँ के दुश्मन भी कुछ कम नहीं
मगर मेरी तरह हथेली पे जान थोड़ी है…
जो आज है कल नहीं होंगे, कल नहीं होंगे
किराएदार है खुद का मकान थोड़ी है…
लगेगी आग तो आयेगे कई घर जद मे
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है…!
अलविदा राहत इंदौरी साहब।
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