जब जब इंसानियत को बचाने की ज़रुरत पड़ी, देश के लिए सबसे आगे मुसलमान रहा -कृष्ण कान्त

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गोदी मीडिया उन्हें बदनाम करती रही, योगदान में वही मुसलमान सबसे आगे -कृष्ण कान्त
दरभंगा की शबाना को बच्चा होने वाला था. दुर्भाग्य से बच्चा खराब हो गया. उनकी जान संकट में आ गई. डॉक्टर ने कहा कि जान बचाने के लिए खून चाहिए. शौहर मोहम्मद अली ने कोशिश की, विधायक से लेकर परिचितों से मदद मांगी लेकिन खून देने वाला नहीं मिला.
इस बारे में एक समाजसेवी टीम को जानकारी हुई. इस टीम के सदस्य रौशन कुमार खून दान के लिए निकल पड़े. रास्ते में लॉकडाउन में बौराई पुलिस ने डंडा भांज दिया. रौशन कुमार डंडा खाकर भी अस्पताल पहुंचे और शबाना की जान बचाई. मोहम्मद अली का संदेश है कि रौशन के लिए मेरे पास अल्फाज नहीं हैं, बस इतना समझिए कि हिंदू और मुसलमान दोनों के खून का रंग एक है.

नूर मोहम्मद 60 बरस के हैं. शामली में रहते हैं. एक सप्ताह से बीमार थे. उन्हें एक नर्सिंगहोम में भर्ती कराया गया. डॉक्टर ने बताया कि नूर मोहम्मद को पीलिया है. जान बचाने के लिए 10 यूनिट ब्लड की जरूरत है.
लॉकडाउन के चलते लोग घरों में बंद हैं. इतना ब्लड आए कहां से. परिवार के हाथ पांव फूल गए. डॉक्टर के माध्यम से ब्लड बैंक चलाने वाले किन्हीं अजय संगल से संपर्क किया गया. कुछ ही घंटों में दस रक्तदाता पहुंच गए और ब्लड का प्रबंध हो गया. संयोग से दसों रक्तदाता हिंदू हैं. इनमें महिलाएं भी हैं और पुरुष भी.
ब्लड बैंक संचालक का कहना है कि हमारा कुछ लोगों का समूह है. किसी की भी जान बचानी हो, हम हाजिर हो जाते हैं. इसके लिए जाति-धर्म नहीं देखा जाता.

तमिलनाडु के त्रिची में एक गर्भवती महिला को प्रसव के दौरान रक्त की जरूरत थी. उसका पति तालाबंदी में इधर उधर लोगों से मदद मांगता है. उसकी मुलाकात सिपाही सैय्यद अबु ताहिर से होती है. सिपाही उस व्यक्ति को टोकता है कि लॉकडाउन में कहां घूम रहे हो? व्यक्ति अपनी परेशानी बताता है. सिपाही अबु ताहिर का ब्लड ग्रुप प्रसवपीड़ा झेल रही महिला से मैच करता है. सिपाही अस्पताल पहुंचकर रक्तदान करता है और सद्य:प्रसूता मां और बच्चे को बचा लिया जाता है.
सिपाही को एसपी और राज्य की पुलिस 11,000 रुपये देकर पुरस्कृत करती है. सिपाही यह इनाम का पैसा भी महिला को दे आता है कि उसे पैसे की जरूरत है. इस बारे में रवीश कुमार ने भी लिखा है.
नोएडा के अमरजीत अस्पताल में भर्ती थे. उन्हें ओ नगेटिव ब्लड की जरूरत थी. उनके दोस्त एमएस खान खून ढूंढने निकले. बहुत भटकने पर उन्हें खून नहीं मिला तो उन्होंने पुलिस हेल्पलाइन पर फोन किया. पुलिस टीम के ही एक जवान का ब्लड ग्रुप ओ नगेटिव था. उसने तुरंत रक्तदान किया और अमरजीत की जान बच गई.

गुजरात के वडोदरा में कोरोना से संक्रमित 44 ऐसे मरीज स्वस्थ हुए हैं जो मुस्लिम समुदाय से हैं. उनमें से 40 मुस्लिम अपने रक्त का प्लाज्मा दान करेंगे. इस प्लाज्मा से दूसरे मरीजों का इलाज होगा. 40 लोगों के प्लाज्मा से करीब 100 कोरोना मरीजों का इलाज हो सकेगा. कोरोना के इलाज के लिए ठीक हो चुके मरीजों के ब्लड से प्लाज्मा लेकर बाकी मरीजों का इलाज करने का प्रयोग चल रहा है. इसकी मदद से मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाएगा. मुस्लिम समुदाय के नेता जुबेर गोपलानी ने ठीक हो चुके 44 मुस्लिम मरीजों से बात की और इनमें से 40 प्लाज्मा दान करने को तैयार हैं.
तमिलनाडु में कोरोना से ठीक हो चुके दो जमातियों ने प्रशासन से कहा है कि वे अपना प्लाज्मा दान करना चाहते हैं. मोहम्मद जफर और मोहम्मद अब्बास ने स्थानीय प्रशासन को अपना नंबर दे दिया है. जल्द ही उनका प्लाज्मा कोरोना मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होगा.
जिस तब्लीगी जमात की एक गलती पर देश भर में नफरत बांटी गई, उसी जमात के मौलाना साद ने मुसलमानों से प्लाज्मा दान करने की अपील की है, दूसरे कुछ धर्मगुरुओं ने ऐसी अपील की है, जिसके बाद कोरोना से ठीक हो चुके मुसलमान प्लाज्मा दान के लिए आगे आ रहे हैं.

आप देखेंगे तो दिखेगा कि पूरे देश में बड़े पैमाने पर लोग तन, मन, धन से एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं. जरूरत पड़ने पर शरीर से हाजिर हो रहे हैं, खून भी दे रहे हैं, पैसा, राशन और जरूरी सामान भी.
हमारा हिंदुस्तान बहुत सुंदर है. आप चाहें तो इसकी सुंदरता बढ़ाकर भेदभाव और नफरत फैलाने वालों को हरा सकते हैं.
(सूचनाएं हिंदुस्तान, इंडिया टुडे, नवोदय टाइम्स, अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, न्यूज18 से)
Krishna Kant

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