दावा ठोको लेकिन वह कभी न ठोको जिससे कल किरकिरी हो। बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण और साध्वी प्रज्ञा सिंह इन दोनों को ही एम्स में भर्ती करवाना था जब इन्हें सांस लेने की दिक्कत हुई थी। दोनों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से एलोपैथी का विरोध किया था।
भारत के लोग भी मासूम है। वे कहते हैं डॉक्टर्स कभी कभी गलत दवा लिखते हैं,अस्पताल लूटते हैं, इलाज महंगा है। अरे भाई लोग यह तो अव्यवस्थाएं हैं जिससे सभी दुःखी है लेकिन अज्ञानता, अव्यवस्था का बोलबाला और ऐलोपैथिक पद्धति दोनों अलग अलग विषय हैं। पहले इन्हें मिक्स मत करो।
अव्यवस्था की वजह से एलोपैथी का विरोध करते हो तो आप भी बाबा रामदेव से कम स्टुपिड नहीं हो। 200 का इंजेक्शन 2 हजार या 2 लाख में बिके यह अव्यवस्था है और यहां बात उस इंजेक्शन के प्रमाणिकता व महत्व की हो रही है जो यकीनन आयुर्वेद से अधिक लाभप्रद है क्योंकि वह मानकों के आधार पर निर्धारित है।
आयुर्वेद भी अपनी जगह पर बहुत लाभप्रद और जरूरी पद्धति है लेकिन आयुर्वेद का मतलब रामदेव भी नहीं है। आयुर्वेद और योग पद्धति हजारों साल पुरानी है और इसी से निकलकर एलोपैथी आगे बढ़ी है यह सत्य है लेकिन आयुर्वेद भी आगे बढ़े इसपर काम होना चाहिए रामदेव आगे बढ़े केवल यही उद्देश्य नहीं होना चाहिए।
आपको याद रखना चाहिए असंख्य आयुर्वेद डॉक्टर्स और असंख्य योग गुरु आज बेरोजगार घूम रहे हैं। सरकार का सारा ध्यान केवल बाबा रामदेव पर है जो दूसरे को कॉपी करके अपने प्रोडक्ट बनाता है और उसे स्वदेशी की भावनाओं की मार्केटिंग करके बेचता है। अच्छी बात है कि वह कर रहा है लेकिन वह एलोपैथी के विरोध में उल जलूल बोले जिसका कोई आधार ही नहीं तो उसका विरोध स्वाभाविक है, जरूरी है।
– आर पी विशाल । (लेखक के निजी विचार)