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गाँव पता है गाँव, भारतीय गाँव, जहां आज भी जातीवाद पनपता है. इसी गाँव मे दो अलग अलग घटनाएँ होती है…
एक छोटी जाती की शादी शुदा महिला को कुछ उच्च जाती के अमीर रुबाबदार लोग अपनी हवस का शिकार बनाते हैं, वो महिला शिकायत करती है, तो कोई उसके साथ खड़ा नहीं होता. गाँव के आम लोगों का कहना होता है के वो महिला ही चरित्रहीन है. खुद उसकी जाती के लोग भी उसका साथ नहीं देते। उसका परिवार भी उस महिला को ये समझाता है के उन उच्च जाती के बलात्कारियों के खिलाफ कोई रपट पुलिस मे ना लिखाये, वरना हमारा जीना मुश्किल होजाएगा…!
दूसरी घटना मे एक छोटी जाती के नौजवान और एक उच्च जाती के लड़की के दरमियान प्रेम होजाता है, प्रेम से बात भाग कर विवाह करने तक की आ जाती है. दोनों मिलकर गाँव छोड़ भाग जाते हैं और विवाह कर लेते हैं. दूसरी और गाँव मे छोटी जाती के सभी लोग उस नौजवान के घर का बहिष्कार कर देते हैं, ग्राम सभा मे छोटी जाती का हर एक व्यक्ति, लडकी के परिवार और उच्च जाती के रुबाबदारों लोगों से क्षमा याचना करता हैं, गिड़गिड़ाकर रोता हैं, मानव एक नौजवान ने गलती नहीं की बालके ये पूरे जाती का गुनाह हो शायद….एक पूरी जात को गुनाहगार वाली फीलिंग आने लगती है.
यही सब कुछ हिंदुस्तानी मुसलमानो के साथ होरहा है…जहां किसी एक की गलती को (गलती है या नहीं जाने बिना) ही हम सब, उस व्यक्ति, उस के परिवार से मुंह मोड रहे हैं, क्षमा याचनाएं कर रहे हैं, गुनाहगार वाली फीलिंग मे जी रहे हैं…यही तो वो चाहते हैं. हमें इस वाली फीलिंग से बाहेर निकलना होगा….! – उबेद बाहुसेन