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मुसलमानों को एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। AIPMT वाले मसले में। लड़कियों को डाक्टरी के (दाखिला) इम्तेहान में बैठने के लिए हिजाब/नकाब/पर्दा की इजाज़त मिल गयी है शायद। खुश तो बहुत होंगे आप। लेकिन आगे की क्या सोची? मेडिकल कॉलेज में लड़कियों को पुरुष के जननांग में फोली कैथेटर (पेशाब की नली) डालना सिखाया जाता है ताकि इमरजेंसी के वक़्त यदि पुरुष डॉक्टर अनुपस्थित हो तो यह काम महिला डॉक्टर कर दे। इसी तरह के रूटीन उपचार लड़को को भी सिखाये जाते हैं। यह उम्दा डॉक्टरी तालीम का हिस्सा है।
पिछले दिनों एक मेडिकल कॉलेज की सर्जरी ओपीडी में जाना हुआ। वहां देखा कि MBBS के बच्चों की टीचिंग चल रही थी। प्रोफेसर बच्चों को बवासीर और स्तन कैंसर के बारे में पढ़ा रहे थे। पढने वालों में लड़के व् लडकिया दोनों थे जिन्हें उनके टीचर दो मरीज़ों के ज़रिये उपचार का तरीका सिखा रहे थे। मरीज़ों के अंग विशेष खुले थे। एक मरीज़ पुरुष था एक महिला।
अब ऐसा नही है कि मैं आपके हिजाब के खिलाफ हूँ। आप हिजाब लगायें, आपके लिए बहतर है। लेकिन 3 घंटे की प्रवेश परीक्षा में एक स्कार्फ न पहनने से क्या बिगड़ जाता आपका? ग़ैर-महरम को देखना गलत है, फिर उसके जननांग देखना तो और भी ग़लत। लेकिन आपको देखना पड़ता है क्यूंकि आपका फ़र्ज़ है, आपको मरीज़ की जान बचानी होती है।
ठीक इसी तरह सीबीएसई ने तीन घंटे की पाबंदी इसलिए लगाई थी ताकि सिस्टम में धोखाधड़ी को पकड़ा जा सके। लेकिन आपको क्या! आपको को अपना पर्दा बचाना है, सिस्टम बर्बाद हो, इब्लीसियत और बद-उन्वानी का शिकार हो, आपकी बला से !
अब जिन्होंने नकाब/ हटने पर हंगामा किया था, क्या उनके पास इतना कलेजा है कि वो यह सब कर पायें। अलीगढ़ की एक लड़की ने तो पिछले साल बड़े फख्र से प्रवेश परीक्षा ही छोड़ दी थी ! ऊपर से अपनी इस तीस मारखानी की दास्ताँ अख़बार में भी छपवाई थी ! इस्लाम में तस्वीर हराम है। अब उन मोहतरमा से कोई पूछे कि कल फोटो की वजह से पासपोर्ट न बनने की हालत में क्या आप हज का सफ़र भी ठुकरा देंगी? ताज्जुब है, हम क्या खा-पी कर बड़े हो रहे हैं। क्या सोच रहे हैं……
(नवेद भाई )
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