ये वो वक्त था के हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक के पड़ोस में एक यहूदी रहता था यहूदी ने मकान बेचना चाहा तो एक आदमी ने पूछा कितने का बेचोगे ?
यहूदी ने कहा दो हज़ार दीनार का है खरीदोगे ?
खरीदार ने कहा भाई इस इलाके में आपके जैसे मकान की कीमत ज़्यादा से ज़्यादा एक हज़ार दीनार है इससे ज़्यादा नही
यहूदी कहने लगा हाँ आपकी ये बात ठीक है लेकिन एक हज़ार दीनार मेरे मकान की कीमत है और एक हज़ार दीनार अब्दुल्लाह बिन मुबारक के पड़ोस की कीमत है ….
एक वक्त ऐसा भी था मुसलमानो के पड़ोस में जो मकान हुआ करते थे उनकी कीमत बड़ जाया करतीं थी और आज ये वक्त आ चूका है की यूरोप से लेकर अपने मुल्क तक में कई शहरों में मुसलमान किराए पर मकान लेना चाहे तो उसको मिलना मुश्किल है ….मुसलमानो के किरदार पर पलीता लगाने के दोषी दूसरे कम हमारे खुद के आमाल ज़्यादा हैं हमने दुनियां की मुहब्बत और उसको कमाने के लिए अख़लाक़ व किरदार के साथ साथ उन हदों को भी पार कर दिया है जो हमे एक मुसलमान होने से पहले बेहतर इंसान बनाती हैं …शायद इसलिए…..क्योंकि हमने मुहम्मद ए अरबी की तालीमात को छोड़ दिया है ….अमल करना तो दूर पड़ना भी छोड़ दिया है
नतीजा हमारे और आपके सामने है अब !!!
अल्लाह तआला से हम दुआ करते है की बारी तआला हमे हर बातिल फित्ने से महफूज़ रखे।
अल्लाह हर शख्स की इल्म दीन की सहीह समझ फरमाये।
आओ इल्म सीखे।
इल्म सीखो , इल्म (ज्ञान) सीखना हर व्यक्ति पर फ़र्ज़ है।