संघियों के एक व्हाट्सएप ग्रुप में दलित परिवार के ही हत्या में शामिल होने की बात चल रही है.
सोचिये कि एक लड़की के साथ क्रूरतम तरीके से गैंगरेप होकर उसकी हत्या हुई, प्रशासन ने उसके शव को परिवार वालों को ही नही देखने दिया, ख़ुद परिवार का ही नार्को टैस्ट कराने की बात सरकार कर रही है. क्या ख़ुद लड़की के बयान का कोई महत्व नही रह गया? क़ानून बदल गया है क्या?
ऊपर से योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि विपक्ष साम्प्रदायिक दंगे भड़काना चाहता है ( मतलब धमकी यह है कि अब नही रुके तो यह काम हम ख़ुद कर लेंगे) .
जबकि प्रशासन द्वारा जल्दबाज़ी में रातोंरात पीड़िता के शव को जलाए जाने से बड़ा ख़ुद सरकार के ख़िलाफ़ सुबूत क्या है? ऐसा क्यों किया गया? दंगे फैलाने के लिये या दलित परिवार को बचाने के लिये.
इस देश मे तर्क ने आत्महत्या कर ली है, या उसकी हत्या की गई है, सवाल यह है.
लेखिका कनुप्रिया
(कनुप्रिया जी एक सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्र पत्रकार है)