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इस तस्वीर की तारीफ होनी चाहिये। ये डिजर्व करती है..
ये जालीदार टोपी और हरे दुपट्टे के साथ खिंचवाई हुई फैशनेबल तस्वीर नही है। ये हिम्मत है, जेनुइन हिम्मत है। दोहरी हिम्मत है।
ये माना कि गांधी परिवार के सदस्य होना ही कवच है। इस कवच के बावजूद, एक अरक्षित स्टेट में असुरक्षित घूमना हिम्मत की बात है। जिस परिवार ने एक से ज्यादा एसासिनेशन देखे हैं, उस परिवार में यह हिम्मत साधारण नही है। खुद को उस जगह पर रखकर सोचिये।
दूसरी हिम्मत, कपड़ो से पहचानी जा सकने वाली कौम को सार्वजनिक रूप से गले लगाना है। आज जब हर समझदार, उग्र हिंदुत्व का मुकाबला सॉफ्ट हिंदुत्व से कर रहा है। अल्पसंख्यक कौम के साथ देखे जाने से परहेज कर रहा है। एक मेजर पोलटिकल फेस, उन्हें मिलने, छूने, बाहों में लेने से परहेज नहीं करती। ये आत्मघाती है, पोलिटिकल रिस्क है, मगर सही यही है।
ये जबरजस्त हिम्मत है। पोलिटिकल पण्डितो की मेधा, चाहे जो सलाह देती हो.. जो जरूरी है, वो यह है। और यही फर्क भी है। कांग्रेस और गांधी परिवार को आप दोष दें। वंशवाद, भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण.. चाहे जो कहें, वे सुनेंगे, वे आपको कहने देंगे। और फिर मुस्कुराकर बढ़ जाएंगे। काश वे याद भी दिलाते कि हिंदुस्तान ने सुनहरा दौर उनके ही वक्त में देखा है।
खैर। इस तस्वीर की तारीफ होनी चाहिए। ये डिजर्व करती है
-मनीष सिंह