इनका नारा है कंट्री फर्स्ट, लेकिन हरकत देखिए। देश के प्रधानमंत्री होकर इनको अपनी पार्टी, अपना कल्याण, अपनी जीत, अपना रुतबा, अपनी तानाशाही छोड़कर दूसरा कुछ सूझता नहीं। ये दोनों पोस्टकार्ड बीजेपी के हैंडल से आज पोस्ट किए गए हैं।
मैं 7 साल से कह रहा हूं कि इन्होंने जिस भी चीज का नारा लगाया, उसका बेड़ा गर्क किया है। चाहे धर्म हो, चाहे गाय हो, चाहे अर्थव्यवस्था हो या दूसरी तमाम चीजें। जो बचा है वह भी कतार में है।
आज देश में 2,34,692 नए केस आये हैं और 1,341 मौतें हुई हैं। अलग-अलग शहरों से सारे रिपोर्टर बता रहे हैं कि जो मौतें दिखाई जा रही हैं, असल संख्या उससे बहुत ज्यादा है। ये ऐसी परिस्थिति है कि सरकार समर्थक भी सवाल पूछ रहे हैं, लेकिन इनकी मोटी चमड़ी पर कोई असर नहीं पड़ रहा है।
इस भयावह माहौल में सरकार की प्राथमिकता क्या है? खुद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री नहीं मान रहे हैं। वे “लाशोत्सव” मना रहे हैं। हर शहर से तबाही की खबरें हैं। बनारस जैसे छोटे शहर में जितने केस हैं वह मुम्बई की तुलना में बहुत ज्यादा है। जनता चीख रही है और इनको अब भी चुनाव सूझ रहा है।
लखनऊ में व्यापारियों ने खुद ही लॉकडाउन कर दिया है। कुम्भ के दो अखाड़ों ने खुद ही मेला समाप्ति की घोषणा कर दी तो क्रेडिट लेने के लिए आज ट्वीट कर दिए कि अब कुम्भ प्रतीकात्मक होना चाहिए। लेकिन अपनी रैली नहीं रुकनी चाहिए। हजारों लाशों पर रैली करके चुनाव जीतने का ये मंसूबा कितना क्रूर है? इनसे जिनको भले की उम्मीद है उन्हें अब अपनी आंख खोल लेनी चाहिए। इनका व्यवहार देश के कल्याण का नहीं है। ऐसा लगता है जैसे ये कोई आक्रांता हों, जिनको किसी भी कीमत पर पूरे देश पर कब्जा चाहिए।
मैंने इतने खतरनाक नेतृत्व के बारे में किताबों में तो पढ़ा था, अब अपनी आंख से देश रहा हूं। शाश्वत विजेता होने की हवस से ज्यादा क्रूर कुछ नहीं होता। असंवेदनशील शासक अपना तो विनाश करते ही हैं, देश को समाज को ऐतिहासिक नुकसान पहुंचाते हैं। नजीर आपके सामने है।जिंदाबाद।
-कृष्ण कान्त (लेखक स्वतंत्र प्रकार है)