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पाकिस्तान से कश्मीर छिनने वाला शेर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान
भारत के पास कश्मीर का जो बचा खुचा तीसरा हिस्सा है वह ब्रिगेडियर उस्मान के कारण है…
ब्रिगेडियर उस्मान, जिनको जिन्नाह और पाकिस्तान की सरकार ने बुलाया और अपने यहाँ सेनाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया था पर ब्रिगेडियर उस्मान ने ऐसे पद पर लात मार दिया.. ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भारत के पहले ऐसे अफसर हैं जिनके डर से पाकिस्तान ने उनपर तब ₹50 हजार रुपये का इनाम रखा था.. आज उस मूल्य का आकलन कर लीजिए, माथा घूम जाएगा..
कश्मीर पर आक्रमण कर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने दिसंबर 1947 में झनगड़ नाम के इलाके पर कब्जा कर लिया था, लेकिन यह ब्रिगेडियर उस्मान की बहादुरी थी कि मार्च 1948 में पहले नौशेरा और फिर झनगड़ को भारत के कब्जे ले लिया..
ब्रिगेडियर उस्मान ने नौशेरा में इतनी जबर्दस्त लड़ाई लड़ी थी कि पाकिस्तान के एक हजार घुसपैठिए घायल हुए थे और एक हजार घुसपैठिए मारे गए थे.. जबकि भारत की तरफ से 33 सैनिक शहीद और 102 सैनिक घायल हुए थे..
इसी कश्मीर को पाने के लिए ब्रिगेडियर उस्मान ने भारत की तरफ से पाकिस्तान सैनिकों के खिलाफ़ लड़ते हुए 3 जुलाई 1948 को कश्मीर के नौशेरा में मात्र 33 वर्ष की आयु में अपनी जान दे दी थी.. लीडरशिप क्वालिटी की वजह से ही ब्रिगेडियर उस्मान को “नौशेरा का शेर” कहा जाता है…
अब कोई नारा लगाए की “जहाँ हुआ बलिदान मुखर्जी” उसके मुँह पर यह पोस्ट मार दीजिएगा…
इन चड्ढिधारियों का इतिहास बलिदान देने का नहीं बलिदान लेने का है…