कहते हैं कि जिस पेड़ पर सबसे अधिक मीठे फल होते हैं, उसको सबसे अधिक पत्थर पड़ते हैं ।
उवैसी का कद बड़ा हो गया । अब राहुल गाँधी उवैसी के खिलाफ रैली निकालेंगे। जरा सोचिए राहुल गाँधी को उवैसी के खिलाफ रैली निकालने की क्या जरूरत पड़ गई? आप समझे नही यही तो राजनीति है हिंदु वोट बैंक साधने का जुगाड़। आजादी से लेकर आज तक सभी राजनीतिक दलों ने मुस्लिमों को सिर्फ वोट बैंक समझ कर रखा उन्हे मुस्लिम वोट तो चाहिए लेकिन उनके अधिकारों से हमेशा उन्हे वंचित रखा गया।
सभी राजनीतिक दलों ने आजम खान, शहनवाज हुसैन, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, गुलाम नबी आजाद….. तो पैदा किए लेकिन यह सभी एक मुखौटा बनकर रह गए । बोले तो फर्जी सेक्यूलर पार्टियों के हाथों की कठपुतली ।
सपा, बसपा, काँग्रेस. मुस्लिम वोटरों को रिझाने के लिए आपके घरों में टोपी लगा कर अफतारी करने तो जाएंगे लेकिन सभी राजनीतिक दल एक होकर दलितों की तरह मुसलमानों और खासकर पसमांदा मुसलमानों को विधायिका में प्रतिनिधित्व देने के लिए रिजर्वेशन कानून पास कराने की वकालत नही करेंगे । आज मुस्लिमों को इस बात पर गौर करने की बहुत जरूरत है कि सभी राजनीतिक पार्टियों की यह सोची समझी साजिश है कि राजनीति की मुख्यधारा से मुसलमानों को हटाओ ।
अल्पसंख्यक समुदाय को मुख्यधारा से अलग-थलग किया जा रहा है और मुस्लिम एक दूसरे की जड़ें काटने में व्यस्त है । कहना गलत नही होगा कि आज असदउद्दीन उवैसी साहब शोषित, दबे, कुचले दलितों, मुस्लिमों की आवाज बन गए हैं । जिसे काँग्रेस पूरे दम-खम के साथ कुचलना चाहती है
सुनिये पेड़ पर जब फल और फूल लगते हैं ना तो आपकी ओर केवल पत्थर ही नहीं आते, बल्कि मधुमक्खियाँ आएँगी, पक्षी आएँगे, पशु व अन्य लोग भी आयेंगे । परंतु इनकी परवाह किए बिना अपने लक्ष्य को ओर बढ़ते रहना चाहिए । बीजेपी की सांप्रदायिकता तो बचकानी है कांग्रेस की सांप्रदायिकता शातिराना है । बाकी सब खैरियत है ।
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