हैदराबाद के निज़ाम मीर उसमान अली खान जिन्हें मोहसिन ए हिंदोस्तान कहा जाये तो ज़्यादा बहतर होगा.दरअसल मीर उसमान अली खाँ जो की 1940 के दशक मे दुनिया के सबसे अमीर इंसान थे.उनकी कुल संपत्ती उस समय अमेरीका की कुल इकॉनमी का 2% थी.
अगर आज हिसाब लगया जाये तो लगभग 33.8 बिलियन डॉलर होगी.1937 मे उन्हे टाइम मैग़ज़ीन के कवर पेज पर जगह दी गई थी. और अपने आखिर वक्त तक वो एशिया के सबसे धनी व्यक्ती रहै. ये सारी जानकारी तो विकिपीडिया पर मौजूद है लेकिन वो बात मौजूद नही जिसकी बिना पर मैने मीर उसमान अली खांन को “मोहसिन ए हिंदोस्तान” कहा.. तिब्बत की आज़ादी के मुद्दे पर भारत के रुख पर चीन विरोध दर्ज कराकर भारत को धमकी दे रहा था . हमारी फौजो के पास इतना असलाह और लाव लश्कर नही था की अगर माहौल बिगडे तो चीन से मुक़ाबला किया जा सके.
हालात की नज़ाकत को ध्यान मे रखते हुआ प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने राष्ट्रिय सुरक्षा कोष की स्थापना की.और मदद की गुहार लगा कर रजवाडो का रुख किया..लेकिन कामयाबी हासिल ना हुई.राजा-महाराजा ने हाथ खडे कर दिये….शास्त्री जी मायूस हो गये. फिर अचानक हैदराबाद निज़ाम का ख़्याल आया… और चल दिये हैदराबाद…निज़ाम मीर उसमान अली खां को हालात से रुबरू कराया…तुरंत ही मीर उसमान अली खां ने 5 टन सौना अपने मुल्क की खिदमत मे देने का फरमान सुना दिया.
वहां मौजूद सभी आम ओ ख़ास के होश उड गये…. इतनी बडी मदद….और निज़ाम मीर उसमान अली खां आसिफ जां ने वो सखावत का मुज़ाहिरा किया की आज तक उनकी इस दानवीरता की बराबरी करने वाला सरज़मीन ए हिंद पर पैदा नही हुआ
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