तीन तलाक के खिलाफ बनाए गए मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2019 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. शीर्ष अदालत में इस कानून के खिलाफ दाखिल याचिका में कहा गया कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 में मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. लिहाजा इस कानून को असंवैधानिक घोषित किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक कानून के खिलाफ इस याचिका को ‘समस्त केरल जमीयतुल उलेमा’ ने दाखिल की है. ‘समस्त केरल जमीयतुल उलेमा’ केरल में सुन्नी मुस्लिम स्कॉलर और मौलवियों का एक संगठन है. आपको बता दें कि दूसरी बार केंद्र की सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए तीन तलाक के खिलाफ संसद में बिल लाया था.
इस बिल को पहले लोकसभा से पारित किया और फिर राज्यसभा से पारित किया गया. संसद से पारित होने के बाद मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 31 जुलाई 2019 को अपनी मंजूरी दे दी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के साथ ही मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2019 पूरी तरह कानून बन चुका है. इसको सरकारी गजट में भी प्रकाशित किया जा चुका है. सरकारी गजट में प्रकाशित होने के साथ ही कानून लागू मान लिया जाता है.
आपको बता दें कि इस कानून का कई मुस्लिम संगठन और राजनीतिक दल विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि तीन तलाक के खिलाफ कानून मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है. हालांकि मोदी सरकार का कहना है कि तीन तलाक कानून को मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए लाया गया है.
इसके तहत अगर कोई मुस्लिम अपनी पत्नी को बोलकर, लिखित या किसी अन्य तरीके से तीन तलाक देता है, तो इसको अपराध माना जाएगा. इसके लिए पति को तीन साल की जेल हो सकती है और जुर्माना देना पड़ सकता है. इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि आरोपी पति को मजिस्ट्रेट कोर्ट से ही जमानत मिलेगी. साथ ही मजिस्ट्रेट बिना पीड़ित महिला का पक्ष सुने तीन तलाक देने वाले पति को जमानत नहीं दे पाएंगे.