मुसलमान कोई खुशफहमी न पालें, कि हृदय परिवर्तन हो गया है Everything is Planned

मुसलमान कोई खुशफहमी न पालें कि भाई लोगों का हृदय परिवर्तन हो गया है Everything is Planned
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मुसलमान कोई खुशफहमी न पालें कि भाई लोगों का हृदय परिवर्तन हो गया है Everything is Planned
एकाएक मोदी जी और कुछ एंकर्स की जबान में आया फर्क हैरान कर रहा होगा आपको.. तमाम तो भक्त तक चिढ़ गये हैं कि हमारी होली और रामनवमी में भी एहतियात और बंदी करा दी, उन्हें (मुसलमानों को) बधाई दे कर उनके लिये दुकानें खुलवा रहे हैं.. तो यह अकारण नहीं है, इसकी तीन वजहें हैं।
पहली वजह कि इधर गल्फ वाले शेखों की बदौलत मुसलमानों को टार्गेट करने से जुड़े कई भारतीय मुद्दे इंटरनेशनल लेवल पर नाच गये, #इस्लामोफोबिया_इन_इंडिया तक टाॅप ट्रेंड कर गया.. जिससे भारत और मोदी जी की ग्लोबल छवि पर असर पड़ रहा था तो इस तरह डैमेज कंट्रोल करने की एक कोशिश की जा रही है कि हमारी सेकुलर छवि बनी रहे।
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दूसरी वजह भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक मंदी के बावजूद संभले होने की वजह इसका मल्टी कल्चरल स्ट्रक्चर है कि हर महीने दो महीने कोई न कोई बड़ा त्यौहार काफी हद तक मार्केट को संभाल लेता है, पीछे होली का मौका गंवा चुके हैं, अब सामने रमजान और ईद का मौका है जहां बड़े पैमाने पर खरीदारी होती है और मार्केट को ऑक्सीजन मिलती है। तो पहले से गर्त में जाती और कोरोना की भेंट चढ़ चुकी अर्थव्यवस्था में एक उबाल तो इस बहाने दिया ही जा सकता है और यह कोशिश इसी लक्ष्य के मद्देनजर है।


तीसरी वजह है कि लाॅकडाऊन के बावजूद तय है कि संक्रमण लगभग तीन चौथाई भारत को अपनी लपेट में देर सवेर ले ही लेगा, तो इसका ठीकरा फोड़ने के लिये नये शिकार चाहिये। पहले जमाती के नाम पर एक छोटे पाॅकेट को टार्गेट किया गया लेकिन इस बार रमजान और ईद के नाम पर सीधे-सीधे पूरी कम्यूनिटी को निशाने पर लिया जा सकता है।
यानि शुद्ध भाषा में कहें तो आम के आम और गुठलियों के दाम.. मुसलमान इतने गबदू हैं कि सबकुछ जानते समझते भी इस जाल में फंसेंगे ही फंसेंगे।


तो कुल मिला कर मुसलमान कोई खुशफहमी न पालें कि भाई लोगों का हृदय परिवर्तन हो गया है और भक्त निराश न हो कि उनका हिंदू शेर किसी गलत ट्रैक पर चला गया है। वो अजनबी फिल्म का डायलाग था न.. एवरीथिंग इज प्लान्ड।
-लेखक अशफ़ाक़ अहमद के निजी विचार


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