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ये रोटियां उठाकर कोई प्रधानसेवक तक पहुंचा दो !!!
कहना- “यही रोटियां थी, जिनके लिए उन्होने घर छोड़ा था। किसी चिमनी के धुंए में आंखे जलाई, किसी मशीन का पुर्जा बने, किसी सड़क का फुटपाथ हुए। कमाई चंद रोटियां, जो लेकर घर जा रहे थे”
बताना-” जिन थालियों में इसे खाते थे, उसे धोकर आपके लिए बजाया भी था। वो आपकी इज्जत करते थे, बातें सुनते थे, डरते थे, मानते थे। मासूम थे, न वामपन्थी, न गद्दार, पाकिस्तानी भी नही। ये निरापद, निरीह भारतीय थे।
ये भारत थे। उनकी आंख की कोर में, एक बुझता- डूबता सपना था, अच्छे दिनों का..! वो उम्मीद, जो आज सुबह धड़धड़ाती ट्रेन के नीचे टुकड़े टुकड़े हो गयी।
उनसे पूछना- क्यों नही वे उस ट्रेन के ऊपर बैठे थे ? अगर जवाब नही मिले, तो उनका हाथ अपने हाथ मे लेना। हथेलियां खोलकर ये रोटियां रख देना, जो उन गरीबों के पसीने से गुथी है। अब तो उनका खून भी मिला है। कहना- “छोटे लोग थे। नए भारत को बनाने के लिये बस इतना ही योगदान दे सके”।
फिर रोटियां रखकर मुट्ठी बन्द कर देना। आंखों में आंखे डालकर पूछना- ” साहेब, ईमान में गुथी ये रोटियां तक तो साथ जाती नहीं.” आप ये तख्तोताज कैसे लेकर जाओगे ???
Manish Singh जी का मार्मिक लेख