SD24 News Network
रिहाई मंच अध्यक्ष मो०शुऐब एडवोकेट को लखनऊ पुलिस ने विवादास्पद नागरिकता अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आह्वान करने के आरोप में पहले 18 दिसम्बर से उनके घर में नज़रबंद रखा और 19 दिसम्बर को रात में 12 बजे के करीब बातचीत के बहाने से थाने पर बुलाकर गिरफ्तार कर लिया। छात्र जीवन से समाजवादी आदर्शों के लिए संघर्ष करने वाले शुऐब एडवोकेट को पहली बार गिरफ्तार नहीं किया गया। जाति सम्प्रदाय से ऊपर उठकर पीड़ित व निरीह जनता की पक्षधरता के कारण वे हमेशा सत्तासीनों की आंख की किरकिरी रहे थे और कई बार फर्जी मुकदमों में उन्हें फंसाया गया था। लेकिन उन्होंने कभी अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। 1975 में आपातकाल के दौरान भी उन्हें डी०आई०आर० के तहत गोंडा में दो महीने तक जेल काटनी पड़ी थी।
लखनऊ में वकालत शुरू करने के बाद भी उन्होंने अपने पेशे से अपने आदर्शों को जोड़े रखा। समाज के दबे कुचले वर्ग के पीड़ितों के मुकदमों की निःशुल्क पैरवी ही नहीं करते थे बल्कि उनकी आर्थिक मदद भी करते थे। कानून की मर्यादा के मुताबिक उन्होंने कभी फीस के लिए किसी मुवक्किल को वापस नहीं किया। आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार किए गए यवकों के मुकदमें लड़ने के खिलाफ जब बार असोसिएशनों के फरमान जारी हो रहे थे तब भी उन्होंने उनके मुकदमे किए। उनके ऊपर लखनऊ कचहरी में वकीलों ने जानलेवा हमला भी किया लेकिन उन्होंने अंत तक हार नहीं मानी और 14 बेकसूरों को रिहाई दिलवाई। संविधान और कानून में अटूट आस्था और उसकी मर्यादा कायम रखने वाले शुऐब एडवोकेट ने हिंसक हमलों तक का सामना किया लेकिन किसी के खिलाफ बदले की भावना से कुछ नहीं किया। यह देश और समाज के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए स्वंय लोकतंत्र सेनानी का दर्जा दिया हो उस पर संविधान की परिधि से बाहर जाकर हिंसा का सहारा लेने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया जाए।
-राजीव यादव, लखनऊ