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1857 के गदर के बाद अंग्रेजों ने मुसलमानों से बदला लिया। अकेले दिल्ली में 27000 मुसलमानों को फांसी पर टांग दिया गया था।
1857 के गदर के बाद अंग्रेजों ने मुसलमानों से बदला लिया। अकेले दिल्ली में 27000 मुसलमानों को फांसी पर टांग दिया गया था। जिस गदर की शुरुआत मंगल पांडेय ने की थी, आज़ादी के उस यज्ञ में आहुति हिंदुओं के साथ मुसलमानों ने दी। या कहें कि उन्हें ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी। विद्रोही सिपाही विद्रोह करके दिल्ली पहुंचे और बहादुर शाह जफर से विद्रोह की अगुआई करने को कहा। शाह इस गदर के नेता बने।
बाद में गदर नाकाम हो गया। अंग्रेजों ने भयानक दमन किया। शाह के दो बेटों और एक पोते को मार दिया गया। जफर के प्रधानमंत्री की ओर से उन्हें सलाह दी गई कि अपने को गदर से अलग कर लें और अंग्रेजों के आगे समर्पण कर दें। जफर ने ऐसा करने से मना कर दिया। उनपर मुकदमा चला और जफर को कैद करके काला पानी भेज दिया गया। उनकी वहीं मौत हो गई।
रंगून में कैद बहादुर शाह ने लिखा-
है कितना बदनसीब जफर दफ़्न के लिए
दो गज ज़मीन मिल न सकी कू-ए-यार में
बहादुर शाह से शुरू हुआ यह संघर्ष लंबा चला। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि आज़ादी के संघर्ष रूपी सिक्के के दो पहलू हैं- हिंदू और मुसलमान। जहां भगत सिंह है वहां अशफाक भी गले में फंदा डालकर खड़ा है। जिनका अतीत आज़ादी आंदोलन से गद्दारी, अंग्रेजों के लिए मुखबिरी और अपने ही महान लोगों को मार देने का हो, वे फांसी चढ़ने वालों को देशभक्ति न सिखाया करें। बड़ा अश्लील लगता है।